कभी तेझ बारिश भीगादेती मुजे
कभी कड़ी धूप में भीग जाता हु

में बोता हुं उम्मीदें खोद के मिट्टी में
कभी उसी मिट्टी के रंग रँगजाता हु

तारों से चमकती सुनसान अँधेरी रात को
पानी से सिंचे हम प्यासी धरती मात को

पहली बारिश की खुशबू इत्तर सी महेक लगे
गोबर के ढेरों से कच्चे सोने सी फसल मिले

कहे सब फल मेहनत का हमेशा मीठा लगे
पूछे कोई हमसे फल मीठा कभी खट्टा मिले

गहरे कुएं में थोड़ा सा पानी देख निराश होता हूं
छोटे से बीजो को उगता देख युही खुश होता हूं

औलाद सी प्यारी ये फसल मेरी
हँसाती है कभी ये रुलाती भी मुजे

किसान की जिंदगी ये बस युही बीत जाती है
हँसते खेलते में बस यूंही जिये चला जाता हूं

  • jaymal karsan modhvadiya
Sukalp Magazine

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