A poem by Jaymal Karshan
नही होते उजाले हर किसीकी ज़िन्दगी में
नही होते दिये हर किसीके घरों मे
दिखी नही मुझे सपनो की दुनिया यहां
तैरते दिखे दिल दुनिया के सागर में (जो)
मरने को खुश और जिंदगी में दुखी दिखे
पैसों की दुनिया चारों तरफ ये पैसा
आम लोगों को दिखता क्यो नही
शरीफ़ दिखते लोगों मे शराफत कहि दिखती नही
एकजुट इस देश मे दूरियां क्यो मिटी नही
हरे-भगवे कपडों मे डाकू रोके रुकते नही
खुद में छिपे भगवान किसीको क्यो दिखते नही
आपस की लड़ाइयों मे रोके ये रुकते नही
सच्चाई की हो जंग तो मैदान में दिखते नही
पेसो से तोलो तो मेरी ज़्यादा औकात नही
बिना वज़ह जुकना वो मेरी फितरत नही
– by જયમલ કરસન
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